Bhagavad Gita Quotes in Hindi
Discover the profound teachings of the Bhagavad Gita, an ancient Hindu scripture filled with timeless wisdom for those seeking spiritual enlightenment. Delve into its sacred verses to gain deep insights into self-realization, the law of karma, and the path of righteousness. Unveil the hidden secrets that can lead you to inner peace and guide you toward a purposeful and fulfilling life. Immerse yourself in the divine guidance of the Bhagavad Gita and embark on a transformative journey of personal growth and spiritual awakening with our Bhagavad Gita Quotes in Hindi.
- जिस प्रकार आप अपने कपड़ों को छोड़कर नए वस्त्रों को प्राप्त करते हैं, उसी प्रकार शरीरों को छोड़कर आप नए शरीरों को प्राप्त करते हैं।
- कर्मयोगी अपने कर्मों में व्यस्त रहकर, फलों में आसक्ति नहीं रखता है। कर्मफल के कारण वह नहीं है और न ही कर्म में आसक्त है।
- जब जब धर्म की हानि और अधर्म का उदय होता है, उस समय मैं खुद रूप लेकर आत्मा का उत्पादन करता हूं।
- योगस्थ पुरुष कर्मों को करें और आसक्ति को त्याग करें, सिद्धि और असिद्धि को समान देखकर समता को योग कहते हैं।
Bhagavad Gita Quotes in Hindi
- जैसे व्यक्ति बुड़ापे में नए कपड़े पहनता है, वैसे ही शरीर छोड़कर आत्मा नए शरीरों को धारण करती है।
- जैसे नदी में सागर का पानी भरता है, वैसे ही संतोष करने वाला व्यक्ति सभी कामनाओं को प्राप्त करता है, नहीं चाहिए।
- यह दैवी माया, गुणों से युक्त मेरी माया है। वह जो मेरे पास आते हैं, उन्हें वह इस माया को पार करा देती है।
- वह न तो हथियारों से काटा जा सकता है, न अग्नि उसे जला सकती है, न पानी उसे भिगो सकता है, न हवाओं ने उसे सुखाया है।
- सब धर्मों को त्यागकर सिर्फ मुझमें ही शरण ग्रहण करो। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, शोक मत करो।
- वह जो मुझे सबही जगह में देखते हैं और मुझे सब में देखते हैं, उसे मैं कभी भी खो नहीं जाता और वह कभी भी मुझसे अलग नहीं होता।
- यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत। अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्॥
Bhagavad Gita Quotes in Hindi
- कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन। मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि॥
- श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्। स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः॥
- योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय। सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥
- वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि। तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही॥
- आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत्। तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाप्नोति न कामकामी॥
- दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया। मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते॥
- नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः। न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥
- सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
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